बाइबिल: 1 तीमुथियुस 6:5-12शीर्षक: ईश्वरी क महान लाभ है
6:5 एवम् उन लोगों के बीच जिनकी बुद्धि बिगड़ गयी है, निरन्तर बने रहने वाले मतभेद पैदा होते हैं, वे सत्य से वंचित हैं। ऐसे लोगों का विचार है कि परमेश्वर की सेवा धन कमाने का ही एक साधन है। 6:6 निश्चय ही परमेश्वर की सेवा-भक्ति से ही व्यक्ति सम्पन्न बनता है। इसी से संतोष मिलता है। 6:7 क्योंकि हम संसार में न तो कुछ लेकर आए थे और न ही यहाँ से कुछ लेकर जा पाएँगे। 6:8 सो यदि हमारे पास रोटी और कपड़ा है तो हम उसी में सन्तुष्ट हैं। 6:9 किन्तु वे जो धनवान बनना चाहते हैं, प्रलोभनों में पड़कर जाल में फँस जाते हैं तथा उन्हें ऐसी अनेक मूर्खतापूर्ण और विनाशकारी इच्छाएँ घेर लेती हैं जो लोगों को पतन और विनाश ही खाई में ढकेल देती हैं। 6:10 क्योंकि धन का प्रेम हर प्रकार की बुराई को जन्म देता है। कुछ लोग अपनी इच्छाओं के कारण ही विश्वास से भटक गए हैं और उन्होंने अपने लिए महान दुख की सृष्टि कर ली है। 6:11 किन्तु हे परमेश्वर के जन, तू इन बातों से दूर रह तथा धार्मिकता, भक्तिपूर्ण सेवा, विश्वास, प्रेम, धैर्य और सज्जनता में लगा रह। 6:12 हमारा विश्वास जिस उत्तम स्पर्द्धा की अपेक्षा करता है, तू उसी के लिए संघर्ष करता रह और अपने लिए अनन्त जीवन को अर्जित कर ले। तुझे उसी के लिए बुलाया गया है। तूने बहुत से साक्षियों के सामने उसे बहुत अच्छी तरह स्वीकारा है।
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परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया, परन्तु जगत की उत्पत्ति से पहिले, उसने हमें चुन लिया, हमें नाम से बुलाया, और हमें स्वर्ग के पवित्र लोग बनाया। एक आध्यात्मिक शाश्वत प्राणी के रूप में हमेशा के लिए जीने के लिए। यानी अनंत काल तक ईश्वर के साथ रहना। परन्तु पाप जगत में आया और पाप करने से मृत्यु आई।
हमें यहां सोचना होगा। पूरे ब्रह्मांड, सारी मानवजाति, पूरी दुनिया, सभी समय, स्थान, इतिहास, परिस्थितियों और पर्यावरण पर परमेश्वर की पूर्ण संप्रभुता, क्या परमेश्वर की सृष्टि का उद्देश्य बदल जाएगा, भले ही पाप ने दुनिया पर आक्रमण किया हो? आपका क्या मतलब है ? भले ही मानव पाप के कारण मृत्यु आती है, परमेश्वर का सृजन का मूल उद्देश्य, अनन्त जीवन, कभी नहीं बदलेगा।